आतंक कैसा चल रहा ,कैसा तुफान आ रहा|
अब नींद कहाँ आँख में,इंसान ज़ुल्म ढा रहा||
क्यूँ थम गयी वसुन्धरा,आकाश जैसे सो गया|
क्या हो गया इन्सान को हर पल जो डगमगा रहा|
गुण,तेज,शौर्य खो गया,सब तार-तार हो गया|
ईन्सानियत के ताज़ पर कलयुग सवार हो गया||
जब चाहता कानून की वो धज्जियाँ उड़ा रहा,
क्या हो गया...................
रहबरों की बात क्या वो ज़ुल्म की जागीर है
हर मोड़ पे अन्याय और आतंक की तस्वीर है||
जो चोर,बेईमान है,वो सुर्खियों में छा रहा,
क्या हो गया इंसान को............................
~~~~~~~~विनोद यादव 'निर्भय'
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