जीवन-सफर में लक्ष्य का ग़र एहतमाँम होगा|
आसमाँ की दहलीज पर वो कारवाँ होगा||
बनते नही मोती यहाँ हर बूँद आसमाँ के,
बनता वही जो सीप के भीतर गिरा होगा|
जीवन है बहुँत छोटा,निश्तेज क्यों जियें|
अपनें लिए जिया तो क्या खाक जी लिए||
पाता वही साम्राज्य जो पल-पल लड़ा होगा|
क़जा से जो यहाँ लिपटा क़फ़स बन कर पड़ा होगा||
यूँ तो सुने किस्से कई सौभाग्य के क्षणों के,
पायेगा क्या जो भाग्य के पीछे पड़ा होगा|
सौभाग्य भी चलता है उन्हीं के इसारों पर,
जो कर्म के सिद्धान्त पर 'निर्भय' खड़ा होगा||
*एहतमाँम(व्यवस्था),क़जा(भाग्य),क़फ़स(जाल)
- विनोद यादव 'निर्भय'
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