पश्चिमी कायदों को इख्तियार करतें हो|
नासमझ हो अरे ! सड़कों पे प्यार करते हो||
सभ्यता,संस्कृति और पहचान को मिटाकर,
किस इल्म पे कहोगे कल तुम नाज़ करते हो|
लैला-मज़नू सोचकर सर्मा गये होते यहाँ,
नादानीयाँ आजकल जो बार-बार करते हो||
गैर-वाजिब जल्वों की इक्तिजा की खातिर,
ऐहतमाम की अहमियत को दरकिनार करते हो|
'विनोद' बुजुर्गों की अहमियत को भूलकर तुम,
खुदगर्ज हो,रिश्तों को तार-तार करते हो||
--------------------
*इल्म-ग्यान / जल्वा-प्रदर्शन / इक़तिजा-माँग / ऐहतमाम-व्यवस्था या संस्कृति
-----------------
~ विनोद यादव निर्भय
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY