Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उफ़ ! ये कोहरा

 

कोहरे में ना सूझे कहीं आजकल|
बर्फ सी गल रही है जमीं आजकल||

 

 

ओस की बूँदें फैली फ़िजाओं में हैं,
सूर्य दिखता नहीं है कहीं आजकल|

 

 

ठिठुर सी गयीं वादियाँ ठण्ड से,
ज़िन्दगी दर-ब-दर हो गयी आजकल|

 

 

आग के सामनें घण्टों बैठा मगर,
कँपकँपी है कि जाती नहीं आजकल||

 

 

 

-विनोद यादव 'निर्भय

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