कोहरे में ना सूझे कहीं आजकल|
बर्फ सी गल रही है जमीं आजकल||
ओस की बूँदें फैली फ़िजाओं में हैं,
सूर्य दिखता नहीं है कहीं आजकल|
ठिठुर सी गयीं वादियाँ ठण्ड से,
ज़िन्दगी दर-ब-दर हो गयी आजकल|
आग के सामनें घण्टों बैठा मगर,
कँपकँपी है कि जाती नहीं आजकल||
-विनोद यादव 'निर्भय
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