Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विध्यार्थी : योग बनाम अध्ययन

 

जिन्दगी चेतना का नाम है|जब चेतना में संतुष्ठी का एहसास होता है तो सफलता का जन्म होता है|चेतना का सम्बन्ध प्राण से है जबकि सफलता का सम्बन्ध मन से है|यदि प्राण कमज़ोर हो तो शरीर रोगों का घर बन जाता है और यदि मन कमज़ोर हो तो चरित्र निश्तेज होकर अनेक बुराईयों का केन्द्र बन जाता है|ऐसे विध्यार्थी सफलता से कोशों दूर रहते है|ऐसे विध्यार्थियों को योगासन तथा ध्यान करनें की सलाह बिशेषग्यों द्वारा दी जाती है जिससे मन स्थिर होता है मगर उन्हें कोचिंग तथा विध्यालय के अलावा कुछ सोचनें का वक्त नही मिल पाता|विध्यार्थीयों के लिए मन में ठहराव लानें का दुसरा सटीक उपाय है कि वो जिस भी विषय का अध्ययन करतें हैं उसे पुरे मनोयोग तथा केन्दित होकर करें|ध्यान तथा योग का कार्य भी यही है कि अपने मन को किसी एक बिन्दू पर केन्दित किया जाये|केन्दित मन से(विशेषकर सुबह तीन से सात बजे तक)किया गया अध्ययन योग तथा संतुष्ठी का एहसास कराता है| संतुष्ठी का एहसास होनें पर मन तथा बुद्धि में स्थिरता आती है तथा सफलता ख़ुद चलकर विध्यार्थी के पास आती है|

 

 


-विनोद यादव "निर्भय"

 

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