Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आग में कोई जिये या मरे.

 

आग में कोई जिये या मरे...हाथ सेंकते रहते है
हम वो है जो देखते रहते है और देखते रहते है

 

सोचते तो है आज जरूर कह देंगे दिल की बात
सामने मगर झेपते रहते है और झेपते रहते है

(अब ज़रा तेवर बदलते है क्यों की मामला सीरियस नहीं होना चाहिए )

 

 

जिम्मेदारी के पद से कोई आदते बदल जाती है
हम वो है जो फेकते रहते है और फेकते रहते है

 

फेसबुक के शायरो की भी है अपनी ही दुनिया
कटपेस्ट करके चेपते रहते है और चेपते रहते है

 

शराब पुरानी ही सही पर अब मार्केटिंग तो नई है
बदल के शीर्षक टेकते रहते है और टेकते रहते है.......विपुल त्रिपाठी

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