Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आज मेरा वक्त आखिरी, और उन्हें काम बहुत है

 

आज मेरा वक्त आखिरी, और उन्हें काम बहुत है
मिट गए भरम वरना, हम समझते एहतराम [respect] बहुत है

 

आधा अधूरा है उस, लहूलुहान प्यार का किस्सा
लेकिन चटकारे संग चर्चा, उसकी सरेआम बहुत है

 

कहाँ आई. सी. यू. में ले आए, मुझे मेरे यारों
मुझ मुर्द को आज भी, बेवफ़ा का पैग़ाम बहुत है

 

अजनबी हो के भी, बहुत अच्छे है दूनिया के लोग
इनसे दिल मिलाने को अजी, बस राम राम बहुत है

 

उसके दिल की वो राह जो, मुझे उस तक ले जाती है
उसपे ट्रैफिक हैवी है.....अरे आज जाम बहुत है

 

किस ने देखी हाए, किसी की उमर भर की नेकीया
'ब्रेकिंग न्यूज़ दिखाने को,बस एक इल्ज़ाम बहुत है

 

मेरे डिप्रेशन कि दवा, क्या खाक करेंगे ये हाकिम(डॉक्टर)
सामने इक बोतल और....हाथ में मिरे जाम बहुत है

 

रॉकेट साइंस की जरूरत नही है, मंज़िल के वास्ते
सही राह पे मगर बस, इक छोटा सा गाम(कदम) बहुत है

 

अलादीन का चराग क्यों, चाहेगा मेहबूब मेरा
उसको तो काम को अपने, ये अदना ग़ुलाम बहुत है

 

सच कहता हूँ मार काट,किसी मज़हब में नही यारों
कोइ खराबी नही, अच्छा मज़हब इस्लाम बहुत है

 

क्या बताऊ कि तुमसे मुझे, प्यार है कितना जाना
रात बहुत है सुबह बहुत, और दुपहर शाम बहुत है

 

नख्ररे उस के उठाने में, मुझको कोई कोफ्त नही
लेकिन दिल कहता है...चल छोड़ इसमे झाम बहुत है

 

ऐसा नही लोगों की, हकीकतों से हूँ नावाकिफ
फिर भी मेरे दिल को उनका,खयालो खाम(झूठा भरोसा) बहुत है

 

उदास तो रहता हूँ लेकिन, या मुझे बहलाने को
इस दुनिया में आय-हय, गुल-गुलशन-गुलफाम बहुत है

 

कहने को तो सादगी पे, भाषण है खूब बड़े बड़े
साथ-ही उनकी ज़िन्दगी में,मगर टीम टाम बहुत है

 

सोचता हूँ साल में इक दिन की, छुट्टी करूँ इश्क की
ये सुन के वो कहती है...जरा आराम हराम बहुत है

 

ऐसा नही कि आदमी भी, दरसल बहुत है बुरा 'विपुल'
लेकिन इस दुनिया में वो, फिर भी बदनाम बहुत है

 

विपुल त्रिपाठी

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ