Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आँसुओं से धुलते नहीं है दिल के दाग

 

आँसुओं से धुलते नहीं है दिल के दाग
एक मुद्दत हो गई है मुझे धोते धोते

 

कि बार बार लौट आता है फिर मुझ तलक़
परेशा हो गए इस दिल को खोते खोते

 

ज़िन्दगी की सख़्तियों में ना जाने कैसे
कि रह गए हम हर बार फना होते होते

 

अब बहारों में जरूर उगेगी ये फ़सल
हर बार सोचते थे ख्वाब बोते बोते

 

शायद लौट आयेंगे मेरे मेहरबा
कि उम्र भर सोचते रहे राह् जोते जोते

 

मुझ तलक़ आते तो हैं बहुत से हमसफर
लेकिन रह जाता है प्यार होते होते

 

मुझसे कि हँसना सीखिये ऐ अहले जहाँ
वरना बीत जाएगी उमर रोते धोते

 

कि देखिए महक रहा हूँ उसमे अब तलक़
देखा था जो ख्वाब मैंने सोते सोते

 

जमाने के साथ सब ही बदल गए विपुल
लेकिन एक तुम अड़े हो के जो-थे सो-थे .......................विपुल

 

 

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