आसमान में ही उसने...अपना पैग़ाम रख दिया
जुदाई में मेरे वास्ते.....चाँद सरे शाम रख दिया
उसके हंसी पैग़ाम का, मुझे भी जवाब तो देना था
सो मैंने भी चराग सा दिल, उसके नाम रख दिया
देखो जो मेरी हसरते थी...देखो अब वो ज़ख्म है
मैंने भी सब हिसाब-ए-जाँ,यूँ सरे आम रख दिया
बज़्मे साकी में भी....तह्ज़ीब औरउसूल याद रखे
उसने जब फेर ली नजर...मैंने भी जाम रख दिया
उसने नजर नजर में....करी इतनी हसीन शायरी
कि मैंने तो उसके पाँवों में...सारा कलाम रख दिया
दौर-ए-जुदाई में इस क़दर.....बढ़ती गई तेरी वहशते
मैंने तो विपुल "पागल-दीवाना",तेरा नाम रख दिया........विपुल त्रिपाठी
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY