बदल रहा है ज़माना पुराने खयालो पे सबर रखिए
घूँघटों के दिन लद गए, साफ़ ख़ुद की नजर रखिए
ये क्या रेल लाइनों के अगल बगल बैठ जाते हो
कि रोज़ की ही बात है,तो शौचालय ही घर रखिए
फिकरे कसने छोड़ दो ये तुमसे यूँ ना पटेगी
नए जमाने के हसीनो पर,शायरो सी नजर रखिए (तब बात बन सकती है बाईगॉड)
चाहत..प्यार और हवस तीनों में बहुत फर्क है
चाहत और प्यार हसीन है, हवस को घर रखिए
तुम उस देवता से सीख लो,जिसने ये कहा था
मंथन में मिला है जहर, तो मेरे गले इधर रखिए
महबूब को चाँद कहते है तारे नहीं कहा जाता
ये क्या दिल अपना, कभी इधर कभी उधर रखिए
हसीनो तुम भी मान जाओ देखो मत सताओ
कि सुंदर यूँ लगोगे तो,बोलेंगे तशरीफ़ इधर रखिए
कई सालों से अब मै, ख़ुद आप ही से गुम हूँ
घर भी कहता है,के हम से भी गुजर बसर रखिए.......विपुल त्रिपाठी.
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