Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बदलते खेल सी मिली ज़िन्दगी,और हम बदलते गए

 

बदलते खेल सी मिली ज़िन्दगी,और हम बदलते गए
खुशीया बदली गम बदलते गए..और हम बदलते गए

 

कई बार मरने के बाद मैंने मौत से डरना छोड़ दिया
खेल वही था...यम बदलते गए..और हम बदलते गए

 

मेरे दुश्मनों की दास्ताँ भी दोस्ती से ही शुरू होती है
कुछ ज्यादा कुछ कम बदलते गए,और हम बदलते गए

 

मै चाँद तोड़ लाता था और तुम माथे पे सजा लेते थे
वक्त बदला फिर तुम बदलते गए और हम बदलते गए

 

एक थे हम ये याद है और अब जमाने भर के फासले
बस कदम दो कदम बदलते गए और हम बदलते गए

 

बिना गम के रह ना पाये ये अलग बात है कि छोड़िये
इश्क में मगर बेगम बदलते गए और हम बदलते गए....

 

वही इश्क वही बेवफ़ाई का रोना और क्या है ये शायरी
हर शेर में दस्ताने नम बदलते गए और हम बदलते गए

 

हर साक़ी की अपनी शराब है आप नजरों से पहचानिये
ऐसा नही व्हिस्की रम बदलते गए और हम बदलते गए

 

इश्क के मैदान में अपने अस्थी-पंजर सब उड़ लिए
बस हुस्न के बम बदलते गए और हम बदलते गए....

 

 

विपुल त्रिपाठी

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