Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहुत देर तक धुँआ रहा वो लम्हा जो माहताब था

 

बहुत देर तक धुँआ रहा वो लम्हा जो माहताब था
तय था उसका बीतना....अब देखा तो वो राख था

 

 

वो जो रोशन था चाँद सा,वो बादलो में छिप गया
वक़्त की आँधियों में....हर कोई सुपुर्द-ए-खाक था

 

 

 

मेरी नाउम्मीदाना निगाह के,डर से राह् बदल गया
कभी जो शख्स था आशना,कभी जो मेरे साथ था........विपुल त्रिपाठी

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