बंद हुई आँख तो नज़ारे भी सुबह-ओ-शब के गए
कब पलटे है लोग जो....एक बार घर रब के गए
नही लिया इसे किसी ने.......ये अलग बात है
हथेली पे लेके दिल हम..साथ साथ सब के गए
बचा नही कोई करके उसकी बेवफ़ाई का गिला
हमने कर दिया है यानी....हम भी अब के गए
क्या बताये कौन कौन रहता था दिल में मेरे
अब तो वीरान है शहर ये...लोग वो कब के गए
मोहब्ब्त के गिरफ्त में,तूफानों से भी लड़ लिए
और आज आज़ाद है..तो हौसले भी अब के गए
तुम अपने ही अंधेरों का रोना मत रोओ विपुल
इश्क की आँधियों में तो प्यारे चराग सब के गए..........विपुल त्रिपाठी
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