बँटती है जब दरबार में...खैरात दोस्तों
लग जाती है शायरो की जमात दोस्तों
कहते हैं हम तो दिल की बात दोस्तों
दरबार में हमारी क्या...औकात दोस्तों
गिरवी रख दें कलम,हमें मंजूर नही था
कशीदे पढ़ें उनके,हाँ हमें मंजूर नही था
कि जमाने में लोगो का अपना वजूद नही है
चोरी चकारी के अलावा अशार मौजूद नही है
हुक्मरान जानता है....कि बेवकूफों की है फौज
लाइनें लगालगा के खड़े है,कि कभी होगी मौज
रोटी का टुकड़ा दिखाओ तो,बन के मज़लूम चले आते हैं
कोई एक या दो नही......हुजूम के.....हुजूम चले आते हैं
आज़ाद पन्छी हूँ..............बात तभी............छेड़ी है दोस्तों
अलग तरह का कुत्ता हूँ....दुम मेरी आज भी टेढ़ी है दोस्तों
हुक्मरान सुन ले........आता नही मै तेरे खेल में
बुला ले अपनी पुलिस और ठूँस दे मुझे जेल में
कशीदे तेरे गाने के लिए मैं शायरी नही करने वाला
तू रहम नहीं वाला....और मैं सहन नही करने वाला
एक सूरज डूबेगा तो हज़ार निकल आयेंगे
पढ़ ले इतिहास....बार बार निकल आयेंगे
तेरे दरबार के शायर....सरकारी ही कहे जायेगे
हम जैसे मस्त मौला....लोगो के लिए गायेगे
मेरी कलम किसी के बाप की......ग़ुलाम नही है
कर ले तू कितने भी सितम,मेरा सलाम नही है
मैंने तो कलम तो उठाई है.........मेरे लोगों के वास्ते
इसलिए ए हुक्मरान तू तेरे रास्ते और मैं मेरे रास्ते
मेरी शायरी नहीं बनी........तेरी इस सत्ता की......दुकान के लिए
मेरी शायरी तो बनी है,मेरे लोगों के लिए,मेरे हिंदुस्तान के लिए.............विपुल
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