Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इससे पहले की आशना हो जाएँ

 

 

इससे पहले की आशना हो जाएँ
अजनबी चल..हम जुदा हो जाएँ

 

रिश्तों की इबादत......करते रहिये
क्या पता कब कौन खुदा हो जाएँ

 

जो अबकी मिल जाए तू हमको
ऐसे लिपटे कि एकजां हो जाएँ

 

कि बार बार देखी है मुसीबतें
हम वो नही जो परेशां हो जाएँ

 

ऐसे घिसिये अपने हुस्न से
कि मेरी आंखों में निशा हो जाएँ

 

ये कब चाहा था मैंने जाना
के फ़ासले भी दरमियाँ हो जाएँ

 

कुछ वक्त अलग रहते है
शायद इक-दूजे पे फिदा हो जाएँ

 

कैदे-ज़िन्दगी की क़दर करिये 'विपुल'
क्या पता कब कहाँ रिहा हो जाएँ................विपुल

 

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