फूल की तरह रोज़ सुबह मुस्कुराते रहे
छुपाया कि रात भर ओस में नहाते रहे
तुझ से बिछड़ कर भी हम पूरी पूरी रात
तेरी यादों की रोशनी में झिलमिलाते रहे
सुबह आइने ने आँखों में घूर के कहा
रात भर तुम किसके गम में करहाते रहे
जज़्बा-ओ-पैग़ाम भी साथ जल जायेंगे
तेरे खतों को इस उमीद में जलाते रहे
ये दिन में भी किसी को उजाले ना बख्शे
वैसे रात भर बड़े शहर जगमगाते रहे
इश्क के समंदर में यूँ कटा अपना सफर
की हौसलों के बेड़े डगमगाते रहे.........................विपुल त्रिपाठी
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY