Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हमने आज फिर......ये बताने को कलाम रखा है

 

हमने आज फिर......ये बताने को कलाम रखा है
तूफानों में भी शम्मा ने.........लौ को थाम रखा है

 

 

देखें क्या मिलें हमे आज.............अपने नसीब से
हमने आज उनकी महफिल में...जाके सलाम रखा है

 

 

के मुझको कहीं भूल ना जाना तुम ऐ मयकशो
अब भी मयखाने में मेरे हिस्से का जाम रखा है

 

 

शायद मुझसे मिलके उसका मन अभी भरा नही
तभी तो उसने यूँ फँसा करके......मेरा काम रखा है

 

 

गालिब की तरह हमे भी मालूम है "जन्नत" की हक़ीक़त
हमने फिरभी मगर दिल में उसका खयालो-खाम रखा है

 

 

मुश्किल था संग जिसके एक पल भी हाय काटना
उन तन्हाईयों को संग अपने...उम्र तमाम रखा है

 

 

हाये पूछते है वो गैरों से....क्या है दीवाने का नाम
ख़ुद बता देते है कि जमाने ने..विपुल नाम रखा है

 

 

 

---- विपुल त्रिपाठी

 

 

 

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