Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हमारे इज़हार पर.....उनकी ना ठहरी

 

हमारे इज़हार पर.....उनकी ना ठहरी
हमारी जान गई...उनकी अदा ठहरी

 

 

हर काँटे की नोक पर,देखिये खून है
बाग़-ए-इश्क़ में....हमारी वफ़ा ठहरी

 

 

उसके दिखते ही.....फूल खिल गए
किसको दोष दे,आख़िर फिज़ा ठहरी

 

 

तेरे आ जाने से....खुशबुएं महक उठी
पिछला शेर देखिये,आख़िर हवा ठहरी

 

 

अकड़-अकड़ में जिसे,अल्विदा कह दिया
उसीपे है नजर....कहाँ रुकी-कहाँ ठहरी

 

 

मेरे सामने उसके लिए ग़लत मत बोलिए
लाख बेवफ़ा सही..लाले-दी-जाँ ठहरी

 

 

जब तक छोटी थी,तब तक साथ थी
बढ़ने लगी परछाई..फिर कहाँ ठहरी

 

 

दाग ये जाते नही धो-धो के देख लिया
हस्ती-ए-दिल पे,इश्क के निशा ठहरी

 

 

आजकल वो ज़मीन पे,लोट के नाचता है
पूछा क्या हुआ,बोला लौंडिया जवा ठहरी

 

 

दोस्तों के शहर में ज़ख्म दिल पे खाए
दवा वही खत्म हुई,तबीयत जहाँ ठहरी

 

 

खत्म भी करो विपुल,बहुत शेर हो गए
तेरी ये ग़ज़ल नही,इश्क की दस्ता ठहरी..............विपुल त्रिपाठी

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