Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हाथ लगाओ तो यही हर शीशा कहता है

 

हाथ लगाओ तो यही हर शीशा कहता है
आइनो में अक़्स नही तिलिस्म रहता है

 

 

पूरी क्लास ने था जो स्कूल छोड़ दिया
वहाँ आज भी बच्चो का हुजूम पढ़ता है

 

 

कहने को दरिया समंदर में फना होती है
इसके हर घाट पे हमेशा पानी बहता है

 

 

यूँ तो तुमसे बिछड़ के सम्भल गया मै
एक दर्द सा है जो दिल में बना रहता है.

 

 

तेरे जाने के बाद भी तेरे घर की दीवार पे
कुछ है शायद...जो रोज़ दिये सा जलता है......विपुल त्रिपाठी..

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ