Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इनसान की ज़िन्दगी

 

इनसान की ज़िन्दगी बहुत छोटी है और ख्यालो की ताक़त इतनी ज्यादा है कि शायद कयामत/प्रलय के भी बाद तक रहेगी.....

गोस्वामी तुलसीदास,वेदव्यास,कबीर,मीर,ग़ालिब,फराज़ इनमें से कोई भी अब इस दुनिया में नही है.....हमारे जीवन काल में ये हो ही नही सकता था कि हम इनको देख पाते...पर ये लोग अपने विचारों की वजह से हमारे साथ है....और उन लोगो के भी साथ रहेंगे जो अभी तक इस दुनिया में पैदा ही नही हुए....खूबसूरत अंदाज़े-बया विचारों में चार चाँद लगा देता है....हाँ भाषा और चीजें युगों के साथ बदल जाती है पर इंसानी फितरत नही बदलती....बहार आयेगी तो फूल खिलेंगे ही आप कितने भी पहरे बिठा दिजिये......

इसी क्रम में मैंने ग़ालिब को नयी पीढ़ी तक पहुँचने के लिए पेज "Few of Gaalib" बनाया और मीर साहब के लिए "Few of Meer" बनाया..... जिनका मै समय समय पर Facebook link पोस्ट करता रहता हूँ....

कुछ लोगो की गुलजार साहब से भी शिकायत रहती है इब्ने-बतूता वगैरह(ज्यादा जिक्र नही करूँगा) को ले के,...मगर मित्रों विचार बने ही लोगो के लिए होते है.... विचारों को लोगो तक पहुँचाने में क्या बुराई है....भाषा और रवायते युगों के साथ बदलती रहती है....

नए बच्चे जब इस दुनिया में आते है तो बहुत कुछ बदल जाता है हम लोगो के देखते देखते मोबाइल आ गए........ फेसबुक आ गई...... whatsapp आ गया......कई लोग परेशान रहते है कि बच्चे dude-shude वाली संस्कृति से प्रभावित हो रहे है कैसे अपने culture से जोड़े...????

मित्रों हमारी संस्कृति इतनी मज़बूत है कि 800 साल के विदेशी शासन में भी ना सिर्फ़ बची रही बल्कि शान से फलती फूलती रही आगे बढ़ती रही .....इसलिए
कितना भी dude-shude कर ले पर उमर के एक दौर में ग़ालिब(ये ना थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता) और मीर(आगे आगे देखिये होता है क्या) पसंद आ के रहेंगे.........और जीवन के एक मोड़ पे तुलसी और कबीर(चदरिया झीनी रे झीनी) भी पसंद आयेगे......

हमे बच्चो से दूर जाने के बजाय उनको..........उनकी सोचको समझना चाहिये...टकराव में कुछ नही रखा.....उपदेश देने से कोई नही समझता......हाँ कोई दोस्त बन के समझाये तो बात अलग है..........."ये कहाँ की दोस्ती है कि बने है दोस्त नासेह,कोई चारासाज़ होता कोई गम-गुसार होता".....

इसी क्रम में कल बनारस से जयपुर आते वक्त ट्रेन में कुछ लिखा है....जिसे शीघ्र पोस्ट करूँगा शीर्षक होगा "यूँ है-यूँ है"
एक बार पहले भी इसी शीर्षक से एक ग़ज़ल लिखी थी पर इस बार कलेवर और तेवर अलग होगा.....

 

 

 

 

आदर सहित
विपुल त्रिपाठी

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