Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इंतज़ार में मेरे जब तुम खड़ी थी

 

इंतज़ार में मेरे जब तुम खड़ी थी
पैरों में मेरे तब बेडि़या पड़ी थी

 

कि भूल गया...ऐसा सोचने वाले
तू मेरे खयालो में आ के लड़ी थी

 

इस दुनिया की परवाह कब थी मुझे
नासमझ लेकिन तेरी,फिकर बड़ी थी

 

तेरे सवालों पे आज भी मैंने
जान के इन होठों पे चुप्पी जड़ी थी

 

इक तरफ़ मेरा दीवाना इश्क था
इक तरफ़ मुसीबतों की लम्बी झड़ी थी

 

तुझे छोड़ा तब भी पता था मुझको
वो घड़ी मेरी बरबादी की घड़ी थी

 

तेरा गम तिरी जुस्तजू फिर ताउम्र
मेरी ज़िंदगी की हर खुशी से बड़ी थी.....................विपुल

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