Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जब से बिछड़ा है तू हम दर-बदर के हो गए

 

 

जब से बिछड़ा है तू हम दर-बदर के हो गए
ख़ुद ही को नही पता है की किधर के हो गए

 

देखना ख़ुद बखुद अपना रास्ता बना लेंगे
इन बहते दरियाओ के रुख जिधर के हो गए

 

आँसू उनकी आँख से बह के दरिया में गिरे
मेरे हिस्से के अश्क भी अब समंदर के हो गए

 

पटकता हूँ सर उनके दर पे तो कहता है दिल
किससे मिन्नत करता है,खुदा पत्थर के हो गए

 

शहर भी कोई हुआ करता था कि मेरा कभी
अब तो कई सालों से हम रह्गुजर के हो गए

 

ज़िन्दगी के हर मोड़ पे तू नजर आता रहा
उफ इस क़दर सफर में धोखे नजर के हो गए

 

अब तो यकीन मुझे भी नही कि कभी मिलें थे हम
कैसे कैसे खेल यहाँ पर मुकद्दर के हो गए ......................विपुल

 

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