जबतक दिल दुखता रहा
मेरा कलम लिखता रहा
मुझे छोड़ के जाने वाले
तू ख्वाब में दिखता रहा
कि मै वो शायर हूँ जो
कद्र-दानो में बिकता रहा
दर्द कागज पे यूँ उतरा
जैसे सालो ये सिकता रहा
मजबूरी में था हुआ जुदा
वो देर तक सिसकता रहा
मजबूर आशिकों को यहाँ
तंज ज़माना कसता रहा
विपुल इन शमाओ संग
कुछ है जो धधकता रहा...........विपुल त्रिपाठी..
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