Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जिस शमा-ए-इश्क ने हवाओं को हरा दिया

 

जिस शमा-ए-इश्क ने हवाओं को हरा दिया
उस रोशन चराग को..ज़फाओ ने बुझा दिया

 

 

आख़िर ये ज़ख्म तो बहारो की निशानी है
सो मैंने ता-उम्र इसको...रहने यूँ हरा दिया

 

 

अच्छा हुआ जीने का....ये अंदाज़ आ गया
हंसता मुखौटा चेहरे पे मैंने भी चढ़ा दिया......विपुल त्रिपाठी

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ