जिस शमा-ए-इश्क ने हवाओं को हरा दिया
उस रोशन चराग को..ज़फाओ ने बुझा दिया
आख़िर ये ज़ख्म तो बहारो की निशानी है
सो मैंने ता-उम्र इसको...रहने यूँ हरा दिया
अच्छा हुआ जीने का....ये अंदाज़ आ गया
हंसता मुखौटा चेहरे पे मैंने भी चढ़ा दिया......विपुल त्रिपाठी
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