Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जो भी ना चाहा मैंने,वो सब होते रहा

 

जो भी ना चाहा मैंने,वो सब होते रहा
मुझसे अब ना पूछिये कि क्या कब होते रहा

 

अपने हालातों से वाकिफ तो था मै हरदम
लेकिन मजबूर इस क़दर था कि सोते रहा

 

हमको भी ये पता था कि खुश रहना चाहिये
लेकिन बन पड़ी ऐसी कि यूँ रोते रहा

 

इतना आसान नही था कि तुझे भूल जाना
बिछड़ भी गया तो यादों में ढोते रहा

 

एक मैं था जो भीगने से हाय डरता था
तू अपनी आंखों में मुझे भिगोते रहा

 

माना की तू नहीं बना था मेरे वास्ते
मगर उमर भर ख्वाब तेरे पिरोते रहा

 

ऐसा नही कि विपुल मुझे कभी मिला ही नही
कि मिलता रहा मुझे और मैं खोते रहा.....................विपुल

 

 

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