Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कभी खुशबू बन के महक उठी

 

कभी खुशबू बन के महक उठी,कभी कोयल बन के चहक उठी
अंधेरे जब दिल पे छा गए उसकी यादे मह्ताब सी चमक उठी

 

 

वो साथ रहा तो जुदा जुदा...........और दूर हुआ तबसे साथ है
वो बारूद ऐसा का ढेर था......जब चला गया तब धमक उठी

 

 

यादो के सूखे जंगल में भी.......थी बहुत्त लोगो की बस्तिया
ये बात तब पता लगी..........जब आग जंगल में धधक उठी

 

 

कभी आह से भी तड़प उठी,कभी आँसुओं से भी रुकी नही
मुझपे ख़ुद से ज्यादा यकीन था, वो एक झूठ पर बहक उठी

 

 

वो संभल गया था 'विपुल' पर तू टूट के फिर ना जुड़ सका
तेरे ख्वाब वो तब भी रहता है जब रहती है तेरी पलक उठी...........विपुल त्रिपाठी.

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ