कभी तुमको थी मुझसे मोहब्बते...क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
थी ख्वाबों तक में मेरी जरूरते.. क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
बिना किसी को ख़बर हुए...बीच राह में हम इक नजर हुए
किसी और को देखूं तो शिकायते..क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
जहाँ पहली बार मिलें थे हम...बरसात में साथ छिपे थे हम
कितना बदल गए अब वो ठिकाने..क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
कि मेरे हर ऐब पे मुझे डांटना...मेरी हर जेब को तलाशना
मुझे याद है तुम सिगरेट तोड़ते..क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
मै कहता था मुझसे इश्क है क्यूँ ...तो कहती थी मुझे क्या पता
कहती थी बनी हूँ मै बस तेरे लिए....क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
कभी बिन बात के छेड़ना..और मै जो छेडूँ तो वो रूठना
कभी ऐसे भी थे तुम मेरे वास्ते..क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
वो मिलन की रात साथ में..क़समें दी थी हर बात में
मुझे याद है वो सारी क़समें.....क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
बताने को सताइश हुई बहुत बस..तूने काट ली थी हाथ की नस
मुझे याद है खून में रंगी मोहब्बते...क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
अलग हो के गर जीना पड़ा...मानो इक-दूजे बिन रहना पड़ा
रो रो के रुला देते थे तुम मुझे...क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
जब बन गई दरमियाँ दूरिया......और तुमने बताई मज़बूरिया
मेरे शिकवे पे तुम फूटकर रोये थे....क्या कहूँ कि जब तू भूल गया
मैंने खुदा से कर के शिकायतें...तुझे भूलने की करी रवायते
पर तू रहा है हरदम याद मुझे....क्या कहूँ कि जब तू भूल गया............विपुल त्रिपाठी.
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