कहने को तो अच्छा हुआ...भरम टूट गए
सच तो जाना ऐ दोस्त...पर हम टूट गए
क्या बताये कि बिखर के कहाँ कहाँ गए
मोतियों की माला से.....जब हम टूट गए
तुम तो कई जन्मो के रिश्ते कहते थे
जाने सफर क्या तुझे भी है गम टूट गए
दुनिया बस तेरे लिहाज में चुप बैठी थी
तेरे जाते ही हमपे सबके सितम टूट गए
चलना यहाँ कितना सुहाना लगता था ना
तेरे बिना अब हम...कदम कदम टूट गए
जैसे कोई काँच का गिलास तडक जाता है
हम भी वैसे ही जानम...इकदम टूट गए
कि आँखों से रोज़ बरसाते यूँ होती है
जैसे कई सारे बादल....झमझम टूट गए
सभी के इश्क का है यही अंजाम विपुल
कि रूठ गए,छूट गए....और हम टूट गए .........विपुल त्रिपाठी..
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