Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कि कयामत हम पे गुज़री...यहाँ आते आते

 

कि कयामत हम पे गुज़री...यहाँ आते आते
हाये...और तुम रह गए कहाँ...आते आते

 

उख़ड़ती हुई किअब.. साँसें मेरी कहती हैं
देर ना हो जाए.मेहरबां आते आते

 

जुनून के आलम मेंही होते है कुछ काम
फिर तो होश आ जाता है.. ज़ुबा आते आते

 

ऐसे ही नही पड़े कुए पे रस्सियों के दाग
एक पूरी उमर लगी ये निशा आते आते

 

सुनते है तेरे नाम का हंगामा है विपुल
देखे क्या रंग रहता है यहाँ आते आते................विपुल

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