Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कुत्ते की पुंछ टेढी थी...टेढ़ी है......इधर भी..उधर भी

 

कुत्ते की पुंछ टेढी थी...टेढ़ी है......इधर भी..उधर भी
रोज़ नया बखेड़ा और बखेडी है...इधर भी..उधर भी

 

 

सीमाओं पे समझदारी की दरअसल है बहुत जरूरत
पर रोज़ बेवकूफी ने जंग छेड़ी है...इधर भी..उधर भी

 

 

सर-ज़मीने हिंदुस्तान में आज़ाद घूमते थे कल तक
अलग हुए तो फौज़ की बेडी है इधर नही...उधर ही

 

 

 

 

...............विपुल त्रिपाठी

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