क्यों बेवफ़ाई का...उससे गिला मैंने किया
जब अपनी किस्मत में,उसका लिखा मैंने किया
वैसे तो इसमे मेरा कोई जुर्म नही है
लेकिन सब कहते है उसे बेवफ़ा मैंने किया
उसकी संगदिली का उससे क्या शिकवा करना
मोहब्बत में खुद ही,पत्थर को खुदा मैंने किया
वो शख्स कि जिसने मेरी ओर देखा तक नही
उसके लिए घर फूँक के रास्ता मैंने किया
उमर भर चलता रहा रुस्वाइयो का सिलसिला
वो जब पहुँचा घर मेरे....अलविदा मैंने किया
सुना तो था आग के खेल में जलता है हाथ
लेकिन फिर भी इश्क करके,तजुर्बा मैंने किया
"कि आगे आगे देखिये",बोलता मीर याद आया
अभी अभी जब इश्क में,इब्तेदा मैंने किया..............विपुल
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