लगता मुझको अब.....तेरा ही हर साया है
कोहरा नही..ये मेरी उम्मीद का सरमाया है
सायों के पास आते ही टूटता है दिल
धुँधलके में भी कब उस सूरत को बिसराया है
कि सपनो में भी जब कभी मिलता हूँ उससे
मुझे देखते हि वो रहता बड़ा इतराया है
कि यूँ तो धूप में छँट जाया करती है धुँध
लेकिन रुप की धूप ने राह् में भरमाया है
हमसे जब पूछा गया आशिक हो तुम विपुल
कोने में जाकर तब ये बन्दा बहुत शरमाया है................विपुल
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