महफिलो में हंस के मिलना
और तन्हाईयों में कराहते रहना
दुनिया से झूठ बोल कर
आइने के सामने मुस्कुराते रहना
आँखों का जब भर आना
तो भाग कर वो मुँह धो लेना
आलम-ए-दर्द को छुपाना
और झूठ-मूठ का सो लेना
तन्हा किसी बाज़ार में घूमना
और किसी को ढूँढते रहना
फिर "उस" के ना मिलने पर
किस्मत को कोसते रहना
उसके सामने ज़ुबा ना खुलना
फिर पीछॆ कराहते रहना
लेकिन ये भी गज़ब हुआ विपुल
जब उसने भी आज हिम्मते कर दी
सालों बीत जाने पर भी उसने
मेरी उस चुप्पी की शिकायतें कर दी.......विपुल त्रिपाठी
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