Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मंज़िल से धुँधली रोशनी और तिलिस्म जमगाते मिलते है

 

मंज़िल से धुँधली रोशनी और तिलिस्म जमगाते मिलते है
चरित्र के बिना हुनर हो तो......हुनरमंद डूब जाते मिलते है

 

ऐसा थोड़े ही होता होगा कि लोग मर कर तारे बन जाते है
पर याद आते है कुछ लोग बहुत..तारे टिमटिमाते मिलते है

 

पहले मेरे दिल में रहते थे तो दिल से कही जाते ही ना थे
जब से हुआ हूँ मै मसरूफ वो हमदम...आते-जाते मिलते है

 

लोग खुश है कि हम भी उन सबमें से एक आख़िर हो गए
आइने में लेकिन हम ख़ुद को.....बहुत ही कराहते मिलते है

 

 

विपुल त्रिपाठी

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