Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मेरी रहगुज़र पे पड़े थे कभी..तेरे भी कदम

 

मेरी रहगुज़र पे पड़े थे कभी..तेरे भी कदम
मेरे ज़िन्दा रहने को ये भी बहाना अच्छा है

 

हाँ तू गैर का सही लेकिन ऐ मल्लिका-ए-हुस्न
तिरछी नजरों से मेरे दिल पे निशाना अच्छा है

 

दीवाना इक शायर है जो ज़लालते सह कर भी
यही कहता है कि आयेहाये ज़माना अच्छा है

 

वैसे तो उनके देखे से लगती है हमे नजर
लेकिन हम फिर भी कहते है कि नज़राना अच्छा है

 

वैसे तो खूनी निकलेगी इश्क कि हर दास्तान
मगर शायरी में बयाँ हो तो फसाना अच्छा है

 

कि जुल्म के शहर में भी करते रहिये कुछ नेकिया
गरीब मज़्लूमो से चंद दुआए कमाना अच्छा है

 

हाये कि आते है जब जब वो मेरे दिल की गली
चारों ओर देख के कहते है वीराना अच्छा है

 

कि बहुत अच्छी है मेरे जाने जिगर की वो गली
और वहाँ जाकर मेरा खून में नहाना अच्छा है

 

हाये हम आशिकों को है यहाँ झिड़कियों का शौक
जलील हो के भी ये कहते है कि ताना अच्छा है................विपुल

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ