रहते हैं हम तेरी....परछाईयों के साथ
यूँ गुजरती है मेरी तन्हाईयों के साथ
कब तक रोते हम अपनी बर्बादियो पर
कि अब तो जश्न है रुस्वाइयो के साथ
कैसा अजीब है तेरी यादों का समंदर
डूबता जाता हूँ मै....गहराइयो के साथ
आँख क्यों लगती नहीं है पूरी पूरी रात
नींद क्यों आती नहीं,अँगड़ाइयों के साथ............विपुल
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