रिश्तों को तो दूर् तक....निभाया हमने
लेकिन या रब कुछ भी ना पाया हमने
काँच के टुकड़े टूट के जुड़ते ही नही
दिल को फिर क्यूँ शीशा बनाया हमने
चाहते दिलो के धड़कनें से चलती है
टूटे रिश्तों को क्यों रफ़ू कराया हमने......विपुल त्रिपाठी
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