एक नज्म और एक ग़ज़ल एक साथ [कोम्बो-पैक]
सुना है इश्क में हो जाता है खून-ए-जिगर
चलो तो अब के हम भी मर के देखते हैं
ये सुना है बड़ी फिसलन है उसकी गली में
तो चलो हम ख़ुद ही अबकि गुजर के देखते है
सुना है के जमाने भर का हुस्न है उस में
चलो हम भी उसे फिर आँख भर के देखते है
सुना है के बड़ी कातिल है निगाहें उसकी
चलोकि हम भी अपना खून करके देखते हैं
सुना हैकि चाँद भी शरमा के छुप जाता है
हुज़ूर जब यूँ कि छत पर आ कर के देखते है
सुना है आईने टूट जाया करते है
वो जब उसमें यूँ रुख्सार कर के देखते है
सुना हीरे मोती भी कि शर्माने लगते है
उफ जब वो उनको दीदार कर के देखते हैं
सुना हैकि मुर्द में भी जान लौट आती है
जब वो उनको एक निगाह कर के देखते है
सुना है शहर में फिर कर्फ्यू लग जाते है
सब जलवे उनकी पतली कमर के देखते हैं
सुना है जमाने कि तस्वीर बदल जाती है
जब वोकि सज के और फिर संवर के देखते हैं
सुना कि ऐसे तीखे हैं उसके नैनो नक्श
के गुलाब भी उसको आह भर के देखते है
सुना है रेशम की है कलाईयाँ उसकी
चलो अबकि हम उसे हाथ पकड़ के देखते हैं [ये मत कर लीजियेगा.ये खतरनाक है]
सुना है कि फिर जुगनू भी चमकने लगते हैं
वो जब घनी ज़ुल्फों को सर कर के देखते है
सुना तितलियाँ फूलों को भूल जाती है
वो जब बगीचो में कि निकल कर के देखते हैं
कि अब कब तक उनकी बयानी करें हम आख़िर
चलोकि रुख दूसरा भी हम कर के देखते है
नज्म के बाद अब मज़े ग़ज़ल के देखते है
हम भी थोड़ा सा लहज़ा बदल के देखते है
भले लाख पता हो मुझे के गैर का है तू
लेकिन हम भी हसरत से मचल के देखते है
तिरे 'छ्ह' और 'मिरे' नौ को समझने के लिए
उलझने की जगह पाले बदल के देखते है
छोटे छोटे लालचो के लिए भि लोग यहाँ
दीन-ईमान कि राह से फिसल के देखते है
कुछ है के जब से तू आई है साथ मेरे
सब यार दोस्त मिरे मुझे जल के देखते हैं
अपन दोनों के अहम ने हि तोड़ा है रिश्ता
कि इस अहम से अब आगे निकल के देखते हैं
कहाँ तो मुझसे कोई मतलब ना था उनको
गैर कि साथ हूँ तो उछल उछल के देखते है
मोबाइल कम्पनियों ने ऐसा ठगा है के
हर मैसेज को हम बड़ा संभल के देखते है
ना सही ज़िन्दगी भर का साथ तो क्या हुआ
इक राह् कुछ दूर् तो साथ चल के देखते हैं
यूँ तो जमी ही रहेगी के रिश्तों पे बरफ
बातों कि अलाव में तप के गल के देखते हैं
मुलाकात में कैसे हो दिल की बात हम तो
कभी-ज़ुल्फ,कभी-आँख,कभी-पलके देखते हैं
ऐसा प्रसाद मिला अब कि सियासतदारों को
लालबत्ती गायब है तेवर हल्के देखते है
अब किसी ने चखाया बेवफ़ाई का स्वाद
ये जो आज हम गीली उसकी पलके देखते है
लगता है पीढ़ियों की हसरत थी ये मंज़िल
कि मुर्दे भी अब क़ब्रों से निकल के देखते है
बलाये ख़ुद आ के,कि मुझसे लिपट जाती हैं
जब भी सोचते है कि विपुल टल के देखते हैं ............विपुल
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