Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुझे आँख में लिए हूँ... मै जहाँ देखता हूँ

 

 

तुझे आँख में लिए हूँ... मै जहाँ देखता हूँ
मत पूछ मुझसे जाना...कि कहाँ देखता हूँ
जहाँ भी देखता हूँ........तेरा समाँ देखता हूँ
तुझे यहाँ देखता हूँ, कि तुझे वहाँ देखता हूँ

 

मेरी हर साँस में यहाँ अब, खुशबू तेरी महके
मेरी तन्हाइया और भी, तेरी याद में दहके
कब मिलेंगे फिर हम, के यही खयाल है रह रह के
तेरी जुस्तजू ही तो मुझ पर, कि सुबह शाम चहके
मैं और कुछ भी हमदम, के कहाँ देखता हूँ
तुझे आँख में लिए हूँ... मै जहाँ देखता हूँ
तुझे यहाँ देखता हूँ कि तुझे वहाँ देखता हूँ

 

 

तू मेरी धूप है अब, और मैं हूँ तेरा साया
तेरे बग़ैर भी कैसे, कभी हूँ कि मैं बन पाया
तू ही मेरी ग़ज़ल है, तुझे ही तो मैंने गाया
कि हर लफ्ज को अपने, तेरे खयालो बनाया
चाहे ज़मी हो या फिर, आसमा देखता हूँ
तुझे आँख में लिए हूँ... मै जहाँ देखता हूँ
मत पूछ मुझसे जाना...कि कहाँ देखता हूँ .................विपुल

 

 

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