उसने दिल्लगी से भी गर पुकारा....."विपुल"
हमने मासूमियत से बोला..."तुम्हारा विपुल"
बहती हुई कश्ती ही बनी आख़िर ठिकाना
कि हमे रास ना आया कोई किनारा विपुल
मै भी चुप हूँ आज....और वो भी गुमसुम
बात करते थे जो कभी करके इशारा विपुल
हसरतो के महल जब हक़ीकतो ने तोड़े
आंसुओ ने हमे अच्छे से सम्भाला विपुल
बस कदम-दो कदम हम दूर हुए थे और
तमाम उम्रको तन्हा तन्हा गुज़ारा विपुल.......विपुल त्रिपाठी
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