लेखक अपने विचार की शक्ति की वजह जाने जाते है.....मै पुराने युग के वाल्मीकि और वेद व्यास की बात तो नही कर रहा पर पिछली कुछ सदियों की बात करे तो गोस्वामी तुलसीदास,बुल्ले शा,सूरदास वगैरह ने युगों को कागज बना के उनके ऊपर लिख डाला.....आज भी वो लोग अपनी लेखनी की वजह से जाने जाते है.
इसी क्रम को आगे बढ़ाया सूफी शायरो ने.....और सबसे बड़ा नाम सूफी लेखनी में संत कबीर का याद आता है.संत कबीर वास्तव में संत थे जिनका जीवन कर्मयोगी का सबसे बड़ा उदाहरण है.....कबीर जैसे संतो को तो युग-युग तक याद रखा जयेगा.और संतो की ताकत समाज को जोड़ने में.....इंसानियत को स्थापित कराने में लगाई जाती है...उस ताकत का मुकाबला दुनिया के सारे ऐटम बम मिल के भी नही कर सकते.
विध्वंस में काम आने वाली शक्ति तो पशुबल है.....बल तो सृजन में लगने वाली शक्ति में होता है.ये हिंदुस्तान के सूफ़ी शायर तो जिस्म को दुल्हन और प्रभु को पिया जी मान के इबादत करते रहे है..ये हिंदुस्तानी सूफी शायरी की ही ताकत है जो इस तरह से पूजा करना सिखाती है......कृष्ण भगवान को भी अकेले नही याद किया जाता बल्कि "राधे-श्याम" करके इबादत की जाती है.वहाँ भी यही वजह है की "राधा" तो हमारा शरीर है और श्याम आत्मा.......अत: राधा के तो जब तक श्याम संग है तब तक है...पर राधा का श्याम से जुदा होना निश्चित है......
हमारी सूफी शायरी की ताकत देखिये की जब भी जिक्र आता है कि "ओरी सखी मेरी माँग सजाओ" हम सब समझ जाते है बात Dead body की हो रही है...ये ताकत है हमारे सूफी पंथ की.....
लेकिन आज आदरनीय कबीर के पंथ का सहारा लेके एक व्यक्ति भोले भाले लोगो को भड़का के समाज को न्यायपालिका को चुनौती दे रहा है.ऐसे व्यक्ति का संत कहलाना संतो का अपमान है.....यदि संत हो तो आचरण भी संत-सरीखा होना चाहिये.....क्या संत लोगो को लाठी उठाने की सीख देते रहे है...???? संत समाज को जोड़ने में शक्ति का उपयोग करते है......जो काम ये महाशय कर रहे है वो तो अफगानिस्तान में एक ओसामा नाम के तथाकथित संत ने किया था...जिसको सभ्य समाज ने इकठ्ठा होके अपने अंजाम पहुँचा दिया.......
एक कबीर का लिखा खूबसूरत भजन पेश है इस प्रार्थना के साथ कि ईश्वर सबको सत्बुध्धी दे..
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कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।।
(एक ठग नगर में एक एक कर सबको लूट लेता है)
चंदन काठ के बनल खटोला
ता पर दुलहिन सूतल हो।
(चिता पे लाश रखी है और अपने पिया से मिलने जा रही है)
उठो सखी री माँग संवारो
दुलहा मो से रूठल हो।
आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा
नैनन अंसुवा टूटल हो
चार जाने मिल खाट उठाइन
चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो
कहत कबीर सुनो भाई साधो
जग से नाता छूटल हो
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आदर सहित
विपुल त्रिपाठी
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