ऐ फूल मुझको यूँ .......चिढ़ाता क्या है
जान ले कि बहारे हमसे भी गुजरी हैं
माना आज तू समंदर है और मैं सहरा
लेकिन कभी फुहारे हमसे भी गुजरी है
मेरी खस्ताहाल तन्हाई पे हँसने वाले
कभी लोगो की कतारें हमसे भी गुजरी हैं................विपुल
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