ये तो तराशने वाले का हुनर होता है
वगरना खुदा ना बने ऐसा पत्थर नही देखा
आशिकी की गरमी में दम होना चाहिये
किस मोम के दिलबर ने पिघलकर नही देखा
वो तो जाना आज भी तुझे बुलाता है
पर ऐ बेदर्द तूने ही...कभी मुड़कर नही देखा
जंगली जानवर को भी प्यार चाहिये
हाँ इंसानी फितरत से बड़ा जानवर नही देखा
वो शायर तो ताजी हवा का झौंका है
तुम्ही ने घिसीपिटी लीक से हटकर नही देखा
पहले पहले प्यार के दिन याद तो करिये
कोई है जो कहे उसने वो मंज़र नही देखा
इश्क की राह् में फिसलने से पहले
हमने कभी किसी जगह गिरकर नही देखा
वो रोई तो मेरे दामन में पानी था
मेरी आँखों के अश्कों ने लुढ़ककर नही देखा
कितनी शिद्दत से वो रोया था विपुल
कि हमने आज तक वैसा समंदर नही देखा......विपुल त्रिपाठी..
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