नौका
वो तट की… नही
तट उसका… नही
वह बहती मौजो में ऐसे
जैसे…
यह जहाँ उसका नही
एक इच्छा.. बस बहने की
व्याग्रता कुछ कहने की
एक अहसास जो सर्वोपरि
एक धारा…जिसका
बहाव तय नही
एक व्यथा बंधन टूटने की
कथा, खुद बंध चलने की
एक स्थिरप्रज्ञ जीवन
एक वाहिनी…जिसका
मुकाम तय नही
कई भावों से भरा जीवन
कई जीवनों से बनी कहानी
क्या ऐसे ही बहता हमारा “आप” ?
कई सवाल…जिनका
जवाब तय नही
बस ललक खुशी पाने की
मिथ्या सब अपना बनाने की
एक धुन जो बजती तुझमें
एक तृष्णा…जिसकी
संतुष्टि तय नही
– विशाल अग्निहोत्री (अग्नि)
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