Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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असतो मा सदगमयः तमसो मा ज्योतिर्गमयः

 

भारत में अतिप्राचीन व महान संस्कृति को जीवित रखने वाले त्यौहारों की श्रृंखला में दीपावली पर्व का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थान है यह पर्व न सिर्फ हमारे देश भारत में बल्कि समूचे विश्व में अलग-अलग नामों से तथा अपने अपने सुन्दर ढंग से मनाया जाता है। कार्तिक मास की अमावस्या को प्रतिवर्ष करोड़ों भारतीय असंख्य नन्हे दीप प्रज्जवलित करके अंधकार को चुनौती देते है जगमगाती दीपावली में दीपमालिका की आभा असतो मा सदगमयः तमसो मा त्योतिर्गमयः का वैदिक सन्देश स्मरण कराते हुये असत्य से सत्य की ओर, तम से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर दृढ़तापूर्वक कदम बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करते है। प्रकृति का अपना नियम है कि समाज के कल्याण के लिये जो अपना बलिदान देते है वह सदैव दीपक के उज्जवल धवल प्रकाश की तरह अमर होकर जगमगाते है और जो समाज को क्षति (हानि) पहुँचाने के लिए भभकते है वह आग की तरह बुझा दिये जाते है दीपावली प्रकाश पर्व इन्ही पुनीत भावनाओं व अंधकार निराशा के बीच प्रकाश एवं सत्साहस की प्रेरणापुंज तथा त्याग बलिदान का स्मरणीय प्रतीक पर्व है।

 

“बने बाती सा यह तन मेरा
रहे तेल जैसा ये मन मेरा
जलूँ और जग को प्रकाश दूँ
दिये जैसा हो जीवन मेरा”

 

दीप़ावली वास्तव में दीपक, तेल और बाती की अनूठी एकता और उनके पुण्य बलिदान का प्रतीक स्मरणीय पर्व होने के साथ साथ असत्य और अज्ञान रूपी अंधकार पर सत्य और ज्ञान रूपी प्रकाश की जय-विजय का पर्व भी है। दीपावली के रिमझिमाते झिलमिलाते प्रकाश में अनेक गूढ़ अर्थ प्रकाशित होकर चमकते हुये समाज व राष्ट्र को निरन्तर नई प्रेरणा चेतना व शिक्षा प्रदान करते है जिस प्रकार दीपक एक अकेला होकर भी समस्त प्रकार के अंधकार को काल का ग्रास बना लेता है और अपने प्रकाश द्वारा जग को प्रकाशित कर बुझने के उपरांत भी इतिहास में महाभारत के कुमार अभिमन्यु की भाँति अमरत्व प्राप्त कर लेता है उसी प्रकार हमें भी समाज की अनेक प्रकार की बुराईयाँ रूपी अंधकार को दीपक की भाँति ज्ञान, बल की शक्ति से निर्भय निर्बाध गति से समाप्त करना चाहिये। राष्ट्र में छायी यह बुराई रूपी घनघोर काली अमावस्या जिस दिन हमारी दीपक, तेल और बाती की अटूट एकता व उनके बलिदान की तरह हमारे राष्ट्रीय त्याग संघर्ष रूपी दीपक के प्रकाश से भस्म हो जाएँगी उसी दिन दीपावली और उसकी सार्थकता सच्चे अर्थो में सिद्ध होगी। लेकिन, तब तक

 

“सदभावों के फूलों को
मुरझाने से बचाये रखिए
खण्डित ना हो मानवता
एक दीप जलाये रखिए”

 

 

विशाल शुक्ल ऊँ

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