Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बाबूजी ! जरा धीरे चलो

 

इस समय शादी और बरबादी का मौसम और उसकी बयार एक साथ चल रही है और इसी बयार में बाबूजी को न जाने कौन से 440 वोल्ट के झटके से बचाने के लिए गाना हर जगह जोर-शोर से बज रहा है “बाबूजी जरा धीरे चलो बिजली खड़ी यहाँं बिजली खड़ी गिरी गिरी गिरी गिरी लो गिर पड़ी” पर आश्चर्य बिजली गिरती कहीं नही है बल्कि रफूचक्कर हो जाती है गुल हो जाती है और लोग इधर हाथ पैर मटकाते योगा करते बिजली गिरने की राह ताकते रहते है जैसे भारतीय पति, पत्नी के मायके जाने की, हो सकता है बिजली किसी पर अपनी कृपा दृष्टी डालती हो और गुल होने के बाद किसी पर गिरती हो पर अप्रत्यक्ष रूप से हमारे गांँव में बिजली के दर्शन सफेद शेर की तरह होते है जिस तरह से सफेद शेरो के विषय में कहानियों चर्चाओं में सुनाया जाता है उसी प्रकार बिजली के बारे में चर्चा होती है। हमारे गाँंव में बिजली नाम की गाय, कुतिया और लड़कियाॅ तो छोडिए, पत्नी भी मिल जाएगी जिनके मालिक और पति प्रेमी अपनी पत्नी को बिजली कहकर पुकारते है कभी कभार वे प्यार के अतिरेक में वे उनको बिजली रानी भी कहने लगते है और उसमें प्यारी अलग से जोड़ देते है ऐसा अक्सर हर जगह होता है इसीलिए बिजली शब्द सुनकर मेरा पुत्र मुझसे पूुछने लगा- कि पापा बिजली किसे कहते है मैने अपने मस्तिष्क पटल पर बिना जोर दिए अपने सीधेे साधे शब्दों में समझाया की बेटा बिजली बिना जलने, बिना चलने वाली होती है (बि़जली) बिना जले बिना ठीक चले वही बिजली। बच्चे ने मेरी बात गांँठ बांँध ली और उस दिन से ही मेरी पत्नी को बिजली की संज्ञा दे डाली, अब जब भी मैं उससे बिजली के विषय में पूछता हॅू तो वह अपनी माँं के विषय में बताता है और यह सुनकर घर का नजारा कैसा होता होगा इसका अन्दाजा आप आसानी से लगा सकते है एक क्षण को तो ऐसा लगने लगता है जैसे पूरे गांँव में बिजली आ गई हो और पूरे गांँव ने एक साथ रेडियों की तरह बजना प्रारंभ कर दिया हो वैसे बिजली के विषय में सबकी राय अलग-अलग है । हमारे पड़ौसी बिरजू ने अपनी पत्नि का नाम बिजली रखा है मैने पूछा- तो बताया कि नाम का विपरीत असर पड़ता है पहले इसका नाम शांति था पर यह अंशांति मचा देती थी पंडित जी ने जब से इसका नाम परिवर्तन करने को कहा तब से इसका नाम बिजली रख दिया अब यह बिल्कुल शांत है इसका क्रोध पानी की तरह है हमने नाम के प्रभाव पर खासतौर से बिजली का प्रभाव देखा। वैसे मैं जिस बिजली के विषय में बताना चाह रहा था वह 24 घंटे में केवल यह बताने एक बार क्षण भर के लिए आती है कि वह अभी डायनासोैर की भाँंति लुप्त नही हुई है और ना ही निकट भविष्य में इसकी कोई संभावना ही है यही देखकर मन को संतोष हो जाता है क्या यही कम है और बिजली की शिनाख्त तो उसके हर माह जोर का झटका देने वाले बिल से हो जाती है अब हम इस गाने की सार्थकता से परिचित हों चुके है।

’’बाबूजी ! जरा धीरे चलो-
बिजली खड़ी यहाँं बिजली खड़ी’’।

 

 

 

विशाल शुक्ल ऊँ

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