गौर से देख, चेहरा समझ
आइने को, न आइना समझ
सीख लेना, सियासत का खेल
सादगी- संयम, अपना समझ
गर्व की, कब उडी कोई पतंग
बेरहम बहुत , आसमा समझ
शोर गलियों में ,नाम दीवार
चार दिन का है , फरिश्ता समझ
चाहतों को लुटा खुले हाथ
नेमत खुदा यही , अता समझ
स्याह अँधेरा रौशन करे जो
ज्ञान को सर झुका 'दिया' समझ
रात हो, जुल्म , खत्म होती है
घूमता पास , सिरफिरा समझ
लूटने वाले चल दिए लूट
शोर करना, कहाँ-कहाँ समझ
पेड़ की छाँव ,बैठ तो 'सुशील'
सोच 'माजी', उसे तन्हा समझ
विशाल शुक्ल ऊँ
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