Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गर्व की पतंग ......

 

गौर से देख, चेहरा समझ
आइने को, न आइना समझ

 

सीख लेना, सियासत का खेल
सादगी- संयम, अपना समझ

 

गर्व की, कब उडी कोई पतंग
बेरहम बहुत , आसमा समझ

 

शोर गलियों में ,नाम दीवार
चार दिन का है , फरिश्ता समझ

 

चाहतों को लुटा खुले हाथ
नेमत खुदा यही , अता समझ

 

स्याह अँधेरा रौशन करे जो
ज्ञान को सर झुका 'दिया' समझ

 

रात हो, जुल्म , खत्म होती है
घूमता पास , सिरफिरा समझ

 

लूटने वाले चल दिए लूट
शोर करना, कहाँ-कहाँ समझ

 

पेड़ की छाँव ,बैठ तो 'सुशील'
सोच 'माजी', उसे तन्हा समझ

 

 

विशाल शुक्ल ऊँ

 

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