आभा मंडल की निर्मिति यूँ ही नहीं होती
उसके लिए कोई परिधि तलाशनी होती है
फिर उसका केन्द्र ढूंढना पड़ता है
केंद्र के गुरूत्वाकर्षण का अंदाज लेना पड़ता है !!
फिर जिंदगी की जरूरतों के अनुसार
बार बार परिधि को भेद कर
परिधि के भीतर प्रवेश करना होता है
और जरूरतें खत्म होते ही
एक पल का भी विश्राम न लेकर
किसी भी तरह का मोह न कर
तुरंत बाहर निकल कर आना होता हैं !!
परिधि में अटकने से केन्द्र के गुरूत्वाकर्षण के
दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं , और
इसीको रस्सी के उपर की बाजीगरी भी कहते है
बहुत सारे लोग इसकों संसार भी कहते है
हम इसको जीना भी कह सकते है !!
सही अर्थों में जीना याने
आदमी ने आदमी के लिये
प्रयत्न पूर्वक किया गया
प्रयास और चमत्कार है !!
इस परिधि मे तनाव नियंत्रण महत्वपूर्ण
सूरज की किरणों से लेकर चंद्र के किरणों तक
व्यग्रता और तनाव
रस्सी के उपर की बाजीगरी का ही हिस्सा है !!
सूरज की किरणों की तपन के साथ
बढ़ते जाने वाली व्यग्रता और तनाव
चन्द्र किरणों के साथ शांत हो जाना चाहिए
अगर ऐसा होता है तो
चन्द्रमा खुद प्रत्येक के लिये
एक स्वतंत्र आभा मंडल निर्मित करता चला जाता है !!
सच तो यह हैं कि
यह ख़ुशी और संतुष्टि की बात है !!
हम में से हर एक के पास
अपना
एक स्वतन्त्र आभा मंडल होना चाहिए !!
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विश्वनाथ शिरढोणकर
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