Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज और कल

 

तुम आज के मस्तवाल
मैं भी कल का कोतवाल !!
तुम्हारे ये अहंकारी बूट
मैं देखता आस्था की लूट !!
तुम्हारा सत्ता का तंत्र
मेरा विश्वास का मंत्र !!
तुम्हारा बलिष्ठ तन
मेरा नाजुक सा मन !!
तुम्हरा स्वछंदी वेश
मेरे विश्वास का देश !!
तुमसे तो डरती उपेक्षा
मेरे पीछे सदैव अपेक्षा !!
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विश्वनाथ शिरढोणकर

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