अनजान राहो पर खामोश चल रहे मगर
तय है मिलेंगे किसी अजनबी की तरह !!
आँगन मचल रहा होगा यू बुलाने के लिए
दहलीज उदास होगी गुजरे वक्त की तरह !!
दीवारे खंडहर होंगी और रंग उजड़ा होगा
एक सराय होगी बिना मुसाफिरो की तरह !!
क्या मालूम पतझड़ से परेशां होंगे पेड़ सारे
अंदर से खूब जल रहे होंगे शोलो की तरह !!
जख्म फिर से हरे और घाव उभर रहे होंगे
इकठ्ठे होते रहेंगे गम सारे अमानत की तरह !!
रास्ता सुनसान होगा किसी अपने को ढूंढेगा
मौत भी लावारिस होगी अजनबी की तरह !!
दौर गुजर गया और वक्त बदल गया है
क्यो यह दिल मचल रहा है नादाँ की तरह !!
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विश्वनथ. शिरढोणकर
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